Friday, May 30, 2008

EK THA GUL AUR EK THI BULBUL

पुरूष : एक था गुल और एक थी बुलबुल

पुरूष : एक था गुल और एक थी बुलबुल
दोनों चमन में रहते थे
है यह कहानी बिल्कुल सच्ची
मेरे नाना कहते थे

पुरूष : एक था गुल और एक थी बुलबुल
बुलबुल कुछ ऐसे गाती थी
ऐसे गाती थी ऐसे गाती थी

महिला : कैसे गाती थी

पुरूष : बुलबुल कुछ ऐसे गाती थी
जैसे तुम बातें करती हो
वोह गुल ऐसे शर्माता था
ऐसे शर्माता था ऐसे शर्माता था

महिला : कैसे शर्माता था

पुरूष : वोह गुल ऐसे शर्माता था
जैसे मैं घबरा जाता हूँ
बुलबुल को मालूम नहीं था
गुल ऐसे क्यूँ शर्माता था
वोह क्या जाने उसका नगमा
गुल के दिल को धड्काता था
दिल के भेद आते लब पेह
येः दिल में ही रहते थे
एक था गुल और एक थी बुलबुल

महिला : फिर क्या हुआ?

पुरूष : लेकिन आख़िर दिल की बातें
ऐसे कितने दिन छुपती हैं
येः वोह कलियाँ है जो एक दिन
बस काँटे बन के चुभती हैं
एक दिन जान लिया बुलबुल ने
वोह गुल उसका दीवाना है
तुम को पसंद आया हो तो बोलूँ
फिर आगे जो अफसाना है

महिला : बोलो चुप क्यूँ हो गए?

पुरूष : एक दूजे का हो जाने पर
वोह दोनों मजबूर हुए
उन दोनों के प्यार के किस्से
गुलशन में मशहूर हुए
साथ जियेंगे साथ मरेंगे
वोह दोनों येः कहते थे
एक था गुल और एक थी बुलबुल

महिला : फिर क्या हुआ?

पुरूष : फिर एक दिन की बात सुनाऊँ
एक सैय्याद चमन में आया
ले गया वोह बुलबुल को पकड़ के
और दीवाना गुल मुरझाया
और दीवाना गुल मुरझाया
शायर लोग बयां करते हैं
ऐसे उनकी जुदाई की बातें
गाते थे येः गीत वोह दोनों
सैय्याँ बिना नहीं कटती रातें
सैय्याँ बिना नहीं कटती रातें

महिला : हाई !!!

पुरूष : मस्त बहारों का मौसम था
आँख से आंसू बहते थे
एक था गुल और एक थी बुलबुल

आती थी आवाज़ हमेशा
येः झिलमिल झिलमिल तारों से
जिसका नाम मोहब्बत है वोह
कब रूकती है दीवारों से
एक दिन आह गुल--बुलबुल की
उस पिंजरे से जा टकराई
टूटा पिंजरा छूटा कैदी
देता रहा सैय्याद दुहाई
रोक सके उसको मिल के
सारा ज़माना सारी खुदाई
गुल साजन को गीत सुनाने
बुलबुल बाग़ में वापस आयी

महिला : राजा बहुत अच्छी कहानी थी

पुरूष : याद सदा रखना येः कहानी
चाहे जीना चाहे मरना
तुम भी किसी से प्यार करो तो
प्यार गुल--बुलबुल सा करना
प्यार गुल--बुलबुल सा करना
प्यार गुल--बुलबुल सा करना
प्यार गुल--बुलबुल सा करना

No comments: